Posts

Showing posts from September, 2022

Shiradi Sai Baba Decoded

> SAI BABA REALITY FROM SAI SAT-CHARITRA साँई माँसाहार का प्रयोग करता था व स्वयं  जीवहत्या करता था!   " मैं मस्जिद में एक बकरा हलाल करने वाला हूँ , बाबा ने शामा से कहा हाजी से पुछो उसे क्या रुचिकर होगा - " बकरे का मांस , नाध या अंडकोष ? " -अध्याय ११  ( 1 ) मस्जिद में एक बकरा बलि देने के लिए लाया गया । वह अत्यन्त दुर्बल और मरने वाला था । बाबा ने उनसे चाकू लाकर बकरा काटने को कहा । - अध्याय 23. पृष्ठ 161 .  ( 2 ) तब बाबा ने काकासाहेब से कहा कि मैं स्वयं ही बलि चढ़ाने का कार्य करूँगा । - : अध्याय 23. पृष्ठ 162 .   ( 3 ) फकीरों के साथ वो आमिष ( मांस ) और मछली का सेवन करते थे । - : अध्याय 5. व 7 .  ( 4 ) कभी वे मीठे चावल बनाते और कभी मांसमिश्रित चावल अर्थात् नमकीन पुलाव ।- : अध्याय 38. पृष्ठ 269 .  ( 5 ) एक एकादशी के दिन उन्होंने दादा कलेकर को कुछ रुपये माँस खरीद लाने को दिये । दादा पूरे कर्मकाण्डी थे और प्रायः सभी नियमों का जीवन में पालन किया करते थे । - : अध्याय 32. पृष्ठ : 270 .  ( 6 ) ऐसे ही एक अवसर पर उन्होंने दादा से कहा कि देखो तो नमकीन पुलाव कैसा पका है ? दादा ने
  योगानुशासनम् ॥ १ ॥  शब्दार्थ  -- ( अथ ) अब प्रारम्भ किया जाता है ( योग - अनुशासनम् ) योग के स्वरूप को बताने वाले शास्त्र का।   सूत्रार्थ -- अब योग के स्वरूप को बताने वाले शास्त्र का प्रारम्भ किया जाता है ।  व्यासभाष्यम् - अथेन्ययमधिकारार्थः । योगानुशासनं शास्त्रमधिकृतं वेदितव्यम् । योगः समाधिः । सच सार्वभौमश्चितस्य धर्मः क्षिप्तं मूढं , विक्षिप्तमेकाग्रं निरुद्धमिति चित्तभूमयः । तत्र विक्षिप्ते चेतसि विक्षेपोपसर्जनीभूतः समाधिर्न योगपक्षे वर्तते । यस्त्वेकाग्रे चेतसि सद्भुतमर्थ प्रद्योतयति क्षिणोति च क्लेशाकर्मबन्धनानि लयति निरोधमभिमुखं करोति स संप्रज्ञातो योग इत्याख्यायते स च वितर्कानुगतो , विचारानुगत आनन्दानुगतोऽस्मितानुगत इत्युपरिष्टात्प्रवेदयिष्यामः सर्ववृत्तिनिरोधे त्वसंप्रज्ञातः समाधिः ॥ १ ॥   व्यासभाष्य  -- अनुवाद ' अथ ' शब्द अधिकारार्थ है । यह शब्द आरम्भ को कहता है । इस शब्द से ' योगानुशासन ' नामक शास्त्र प्रारम्भ किया जा रहा है , यह जानना चाहिए । ' योग ' समाधि को कहते हैं । और वह ( समाधि ) चित्त की सब भूमियों में रहने वाला धर्म है । चित्त की क्षिप्त